बचपन की बाँते
दिन शुरू होता था पाउडर कोलगेट से,
दम आता था चपाती और भाजी से,
कांचा, टायर और बॉल का खेल था,
बोतल कैप साए यो-यो बनादिया ये इन्वेन्शन था,
भावरा, लंगड़ी और लप्पा-चुप्पी खेलते-खेलते शाम बीत जाती,
तब माँ खाने को बुलाती।
दम आता था चपाती और भाजी से,
कांचा, टायर और बॉल का खेल था,
बोतल कैप साए यो-यो बनादिया ये इन्वेन्शन था,
भावरा, लंगड़ी और लप्पा-चुप्पी खेलते-खेलते शाम बीत जाती,
तब माँ खाने को बुलाती।
वो एक वाली पेप्सी, जेली और बूमर का लाजवाब स्वाद,
और खेलते वक्त पानी लाने वाले को हमारा सलाम,
अमीर मेहसूस होता तो दस वाली फ्रूटी और पेप्सी लाते,
वर्ना दो वाली नल्ली की पैकेट,
और हर उंगली मे नल्ली डाल कर चुड़ैल बन जाते।
और खेलते वक्त पानी लाने वाले को हमारा सलाम,
अमीर मेहसूस होता तो दस वाली फ्रूटी और पेप्सी लाते,
वर्ना दो वाली नल्ली की पैकेट,
और हर उंगली मे नल्ली डाल कर चुड़ैल बन जाते।
चार लोगो मे कैरम, पांच मे पकड़ा-पकड़ी,
उसे काम हो तो लंगड़ी और कब्बडी,
और भी ज्यादा हो तो सोना-साखली या लप्पा-छुपी,
तब तो अकेला-पन भी अकेला-पन नहीं लगता था,
पता नहीं क्या होती थी बैचैनी,
दोस्तो के साथ बइठते ही मन बहल जाता था।
उसे काम हो तो लंगड़ी और कब्बडी,
और भी ज्यादा हो तो सोना-साखली या लप्पा-छुपी,
तब तो अकेला-पन भी अकेला-पन नहीं लगता था,
पता नहीं क्या होती थी बैचैनी,
दोस्तो के साथ बइठते ही मन बहल जाता था।
स्कूल भी दिल से जाता था,
दोस्तो के डब्बे से खाता था,
अपनी बात और बकवास दोनों सुनाता था,
हाँ एक दोस्त था जो सब समझ जाता था,
अच्छा सब ख्वाब में आता था,
दूसरे दिन सारे गिले-शिकवे भुलाकर फिर दोस्त बन जाता था,
मार्क्स कम आये तो मार और डांट दोनों खाता था,
पर माँ-बाप को छोड़्कर नहीं जाता था।
दोस्तो के डब्बे से खाता था,
अपनी बात और बकवास दोनों सुनाता था,
हाँ एक दोस्त था जो सब समझ जाता था,
अच्छा सब ख्वाब में आता था,
दूसरे दिन सारे गिले-शिकवे भुलाकर फिर दोस्त बन जाता था,
मार्क्स कम आये तो मार और डांट दोनों खाता था,
पर माँ-बाप को छोड़्कर नहीं जाता था।
"छोड़ो यार ये सारी बा बातें",
इसी तरह हम काश आज भी दिन बिताते,
काश हम खुशियाँ कमाते, खुशियाँ ही लाते,
असली दोस्त बनाते, दोस्ती निभाते,
टेक्नोलॉजी से ना हंसाते, ना मन लगाते,
काश वो दिन लौट आते।
इसी तरह हम काश आज भी दिन बिताते,
काश हम खुशियाँ कमाते, खुशियाँ ही लाते,
असली दोस्त बनाते, दोस्ती निभाते,
टेक्नोलॉजी से ना हंसाते, ना मन लगाते,
काश वो दिन लौट आते।
धन्यवाद ☺
इस तरह की और कविताओं के लिए यहां क्लिक करें
Comments
Post a Comment